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l समय आ गया है कि अब प्लास्टिक युग को थामा जाये। जिस जमीन को खोदने पर कभी जड़ें, पत्ते, मिट्टी और कार्बनिक पदार्थ मिलते थे वो अब काँच, सीमेंट, डामर, प्लास्टिक की पन्नियों, पेस्टिसाइडों तथा अघुलनशील अकार्बनिक पदार्थों का जखीरा बन चुके हैं. बहुत समय से हमारे समाज में धारणा है कि यदि व्यक्ति कोई अपराध करता है तो ये उसके संस्कारों और सामाजिक वातावरण का दोष होता है. निश्चित ही ये अकाट्य वैज्ञानिक सत्य है जो सारे संसार के लिए प्रत्यक्ष है, दो अरब की संख्या लिए हुये भी हम सबसे सहिष्णु और ममत्वपूर्ण हैं. इसके लिए जिम्मेदार हैं हमारी नदियां, उपजाऊ जमीन, प्रचुर अनाज और मन को शांत रखने वाला हरा रंग लिए जंगलों का वातावरण।
प्लास्टिक का समुचित पुनर्चक्रण करने के लिए जवाबदेह उन कंपनियों और दुकानों को बनाया जाये जहां से इनकी पैकिंग होती है। इसके लिए हम जिन दुकानों से इन्हे लाये हैं, अनुपयोग की स्थिति आने पर इनको वही पर रखे डिब्बे में वापस किया जाये ताकि ये अपने उद्गम प्रक्रिया स्थल पर वापस पहुँच कर पुनः उपयोग लायक बन जायें। दुकानों, मालों आदि पर प्लास्टिक के थैलों का प्रचलन बंद किया जाये और लोग घरेलू थैलों का इस्तेमाल शुरू करें. ध्यान दें कि ये अतिवादी सोंच हमारे वंशजों के विनाश का कारण बन रही है और उन स्थितियों को जन्म दे रही हैं जहां अन्न उत्पादन हेतु भूमि जहरीली होती जा रही है. इससे उत्पन्न अनाज और सब्जियाँ न केवल कैंसर उद्दीप्त करेंगे वरन आनुवांशिक विकृतियों का प्रकोप भी बढ़ाएंगे।
l ऊर्जा के उपयोग को सीमित करना शुरू कर दें, ए॰सी॰ आदि का बहिष्कार करें तथा स्वेच्छा से ऊर्जा कटौती का स्वागत करें, जैसे सुबह पाँच बजे से ग्यारह बजे तक और सायं चार बजे से सात बजे तक घरेलू बिजली की कटौती की जा सकती है। घरों में हवादानों तथा रौशनदानों का प्रचुर प्रयोग किया जाये।
ये निश्चित है कि भविष्य में हम परमाणु ऊर्जा पर पूर्णरूपेण निर्भर होने जा रहे हैं। बहुत डर है मन में इसके दुष्परिणामों को लेकर. हमारे पौराणिक इतिहास में भगवततुल्य पीपल एवं बरगद के वृक्ष ही संभवतः ऐसे स्तम्भ हैं जो परमाणु जनित आकस्मिक दुर्घटनाओं से हमे बचा सकते हैं। हालांकि इनका न्यूक्लियर रिएक्टर के घेराव लिए बंध तकनीकी तथा रेडिएशन से बचाने वाले अन्य पौधों पर और भी शोध व अध्ययन की आवश्यकता है।
l गैर व्यावसायिक निजी उपभोग किए जाने वाले पेट्रोल तथा डीजल पर सब्सिडी खत्म करके पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर दी जाये जिससे जनता अपने वाहनों की अपेक्षा जन वाहनों का प्रयोग करे। साथ ही कड़े सरकारी नियंत्रण में सारे भारत में समान किराया लागू किया जाये जो निजी वाहनों की अपेक्षाकृत काफी सस्ता हो। इससे न केवल महंगाई तथा प्रदूषण कम होंगे वरन भारत आत्मनिर्भर भी बनेगा।
l भारत को घृणित संचार युद्ध से भी बचाना होगा जिसकी जद में विश्व के सभी देश हैं. आज सूचना व संचार का अंध उपयोग गंभीर परिणाम दे रहा है. सोशल साइटें, अश्लील साइटें, सच्चे-झूठे समाचारों से पटी साइटें, गोपनीय सूचनाओं को साझा करते हैकर्स, बढ़ता इंटरनेट व्यापार, स्मार्टफोनों और कंप्यूटरों के जरिये अपनी आजादी और निजता का दांव एक ऐसा खतरनाक भविष्य दिखा रहे हैं जो हमें खत्म कर देगा। भारत को इसके मुक़ाबले के लिए अपना स्वयं का नेटवर्क तथा शक्तिशाली सर्वर विकसित करना होगा, अपना अलग संचार तंत्र और उपग्रह स्थापित करना होगा जो अभेद्य हो. विशेष परिस्थितियों में ही पूरी निगरानी में विश्व की अन्य साइटों के साथ सूचनाएं साझा करनी होंगी जिनका सामाजिक, आर्थिक व व्यावसायिक दुरुपयोग न हो सके।
l बड़े – बड़े खेतों को रौंदकर बने शिक्षा के व्यावसायिक केंद्र कुकुरमुत्ते की तरह सारे भारत में फैल चुके हैं. कहने को तो ये बी॰एड॰, बी॰फार्मा॰, बी॰टेक॰, एम॰बी॰ए॰ जैसे रोजगार परक कोर्स करा रहे हैं परंतु इनकी वास्तविकता शाम होते ही इन कालेजों के पास की सड़कों, होटलों, बारों, होस्टलों में दिखने लगती हैं. लाखों रुपये खर्च करके अभिवावक अपने बच्चों को यहाँ पढ़ने भेजते हैं परंतु सामाजिक दबाव की अनुपस्थिति में छात्र-छात्राएं ड्रग, बियर, अश्लीलता तथा अपराधों के भँवर मे फंस रहे हैं।
किसी भी देश की शक्ति उसकी युवा आबादी होती है परंतु जब ये युवा शक्ति खोखली जाये तो उस देश का भविष्य क्या होगा ये बताने की आवश्यक्ता नहीं है।
l हमारी शिक्षा व्यवस्था आज भी गुलामी और परतंत्रता की राह पर चल रही है। भारत में एक नवीन शिक्षा पद्धति को लागू करने की जरूरत है जिसमें संसार के नवीनतम शोधों का समावेश हो साथ ही पुश्तैनी रोजगार की शिक्षा का अनुभव भी। यहाँ पर अभिवावकों तथा गुरुजनों का सम्मिलित सहयोग मिलेगा छात्रों को जिससे ये भविष्य में रोजगार को ढूँढने में अवसादग्रस्त नहीं होंगे बल्कि अपने रुचिनुकूल काम करते हुए भारत को सर्वसंपन्न करेंगे।
l नदियां जोड़ने का उपक्रम बहुत अच्छा है जिसमें भविष्य में पानी का जाल फैलाकर जमीन, फसल तथा पानी की कमी से मानव को बचाया जा सकेगा। संभवतः ये ऐसा प्रोजेक्ट साबित होगा जो भारत की तकदीर बदल देगा।
मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि जियो मैपिंग करके नदियों को जो दिशा और ढाल दी जाएगी उससे बहुत हद तक पानी की समस्या से तात्कालिक निजात मिल जाएगी।
लेकिन एक बात नहीं समझ आती कि बड़ी नदियां शरीर में स्थित धमनी की भांति हैं जिनका प्रवाह हृदय से रक्त खींच कर प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाना होता है। इसी प्रकार नदियां भी राष्ट्र की धमनी होती हैं, इनका प्रवाह भौगोलिक ढाल पर निर्बाध होना चाहिए जिससे इनके उद्गम से लेकर अंत तक निरंतर गतिज ऊर्जा से भरपूर दौड़ता जल भूमि की गहराई में और पोषित जीवों तक पहुंचता रहे।
मानव चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, प्राकृतिक ढाल की बराबरी कृत्रिम मानव निर्मित ढाल से नहीं हो सकता. इसका परिणाम यह होगा की चाहे जितना भी पैसा खर्च कर दिया जाये परंतु अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेगा। और अगर नदियां किसी तरह जुड़ भी जाएँ तो सिल्ट और गाद निरंतर नदियों का बहाव अवरुद्ध करेंगे, बाढ़ ज्यादा आएंगी, ड्रेजिंग की सदैव आवश्यकता पड़ेगी तथा जैव विविधता की अपूर्णीय क्षति होगी।
कुल मिला कर ज्यादा दूर तक इस परियोजना का भारत को लाभ नहीं मिल पाएगा।
कोशिश ये की जाये कि लगातार पचास सालों के जियोमैप का अध्ययन किया जाये, उसमें प्राकृतिक ढालों को अच्छी तरह परख कर पहले कुछ छोटी नदियों और नहरों को जोड़ कर उनका परिणाम देखा जाये।
एक दूसरा सुझाव ये भी है कि इन प्राकृतिक ढालों वाली जगहों को पहचान कर गहरी झीलें व तालाब बनाए जाएँ जिनका खर्च कई हज़ार गुना कम आएगा और जैव विविधता भी नीति निर्माताओं को सदैव ऋणी रहेगी।
जिस जैव विविधता के लिए भारत सारे विश्व में सबसे अलग, सार्थक और मानव-प्रकृति प्रेम की अनूठी संस्कृति हेतु सुविख्यात है।
हे नीति निर्धारकों, भारत सिर्फ मनुष्यों का ही नहीं है, ये तो उन भरत का है जिन्होंने सिंह की हिंसक वृति को प्रेम स्पर्श की ऊर्जा से खत्म किया था, ये तो शिव का है जिनका सेवक ऋषभ था जो नंदीश्वर थे जिनके गले पर भुजंग आश्रय लेता था, ये तो राम का है जिनके प्रेम को वानर और भालूओं का साथ मिला था, ये तो कृष्ण का है जिन्हें कालिया नाग अपने फन पर झूलाता हुआ नदी से बाहर लाया, ये दुर्गा का है जिनकी रक्षा के लिए शेर और कंदरायें तत्पर थीं जो शक्ति थीं, ये भारत सिद्धार्थ का है जिनका कलेजा बाण से बिंधे हंस के लिए रोया था, ये भारत विष्णुदत्त का है जिन्होंने मानवता को नैतिक शिक्षा देने के लिए पंचतंत्र लिखी और जीवन के हर पहलू को शिक्षा में डाला, इनके छोटे छोटे वाक्यों को पुनः उद्धत करके पश्चिमी समाज सुधारक सुवाक्य बनाते घूमते हैं. विडम्बना ही है की हम अपनी संस्कृति के महापुरुषों की अपेक्षा पश्चिमी सुधारकों के वाक्यों का अपने भाषणों मे बड़े गर्व के साथ उल्लेख करते हैं, अपनी योग्यता की उच्चता को प्रदर्शित करने में इनको अपरिहार्य मानते हैं।
जबकि वास्तविकता यह है कि,
भारत- अद्वितीय है, जीव-मनुष्यों का ब्रह्मांड है, परिणति है विज्ञान का और चरम है अध्यात्म का।
मेरा सौभाग्य – भारत
वन क्रान्ति – जन क्रान्ति
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राम सिंह यादव
कानपुर, भारत
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