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……. हजारों सालों से अध्यातन अथर्ववेद का आयुर्वेद एवं मानसिक विज्ञान की साधनाओं के रूप में तंत्र और मंत्र विज्ञान, सामवेद में संगीत विज्ञान का धार्मिककरण करके व्यवसाय को ही पुष्ट किया इन आधुनिक नासमझ मानवों ने।
ये व्यवसाय भी हमें कभी न खलता लेकिन आज जब यह मानवता के विनाश पर ही तुल गया हो तो कहाँ तक दम साधे देखेंगे?? प्रतिरोध तो होगा ही अपनी औलादों के अंजाम को सोंच कर………..
अरब देशों के खनिज तेल को निकाल कर वहाँ एक खामोश मौत का निर्वात छूट रहा है, उन मूर्खों को नहीं परख की अंधाधुंध दोहन उस खनिज ऊर्जा का, उनके तथा सम्पूर्ण विश्व की तबाही की पटकथा तैयार कर रहा है। अरे सीमित करो अपनी जमीन को खोखला करना और ऊर्जा का विस्थापन करना।
आर्कटिक की बर्फ को पिघलाते पश्चिमी वैज्ञानिकों, भारतीय उप महाद्वीप पर तो बहुत बाद में प्रभाव आएगा। पहले उस ऊर्जा के बिगड़ते स्वरूप से तुम्हारा नामोनिशान मिटने जा रहा है। तुम्हारा ही बनाया हुआ परमाणु बम था न जिसने हिरोशिमा – नागासाकी का भविष्य अपंग कर दिया। तुम लोगों का बिका हुआ मीडिया कभी तुमको भोपाल की मिथाईल आइसोसाइनेट गैस का जिम्मेदार मानता है? सोचों कि अगर यह तुम्हारे देश में हुआ होता और वो फैक्टरी हम संचालित कर रहे होते तो पचास हज़ार लोगों की मौतों का जिम्मेदार हमें ठहरा कर इराक, लीबिया, विएतनाम और अफगानिस्तान जैसा हमारा भी हाल कर दिया होता? ये तुम्हारे ही हथियारों के व्यवसायिक एजेंट थे न लादेन, सद्दाम, गद्दाफ़ी, तालिबान आदि किसी समय??? जैसे ही ये तुम्हारे विरुद्ध हुये, तुम्हारे मीडिया ने इनकी धज्जियां उड़ा दिया और ऐसा प्रचार किया कि सारे संसार के राक्षस अब यही हैं. जिन्हें कभी तुमने रूस के खिलाफ ईजाद किया था। क्या उस समय ये मनुष्य थे जो तुम्हारा विरोध करते ही शैतान हो गए? सबसे नवीन, संगीतमय और कलाप्रधान धर्म इस्लाम को दक़ियानूसी और आतंकवादी बना दिया तुम्हारे एजेंटों और तुम्हारी प्रतिद्वंदिता ने। इस्लाम की दुर्दशा के जिम्मेदार ये नहीं बल्कि तुम थे जिसने इन मानवों को आत्मघाती बनाकर भोले लोगों को लामबंद करा दिया. आज अरब से लेकर हिंदुस्तान तक मेरी सभ्यता जल रही है,,,, मेरे परिवार मर रहे हैं।।।।।।
अन्तरिक्ष, पाताल, सागर, ध्रुव, जमीन, वायु, जल, आकाश सबको तबाह कर रहे हो न तुम विशुद्ध व्यवसायिक मानव???? कभी सोचा है इसका अंजाम क्या होगा???
सीरिया के एक विस्फोट में मेरा एक चंचल बालक अपने फटे सिर से उगलते खून को नन्हें हाथों से थामता रोता हुआ कह रहा था “मैं अल्लाह से तुम्हारी शिकायत करूंगा कि तुमने मुझे मारा” माँ-बाप के मरे शवों के सामने वो अल्लाह को ही बड़ी ताकत मान रहा था और यही बड़बड़ाते हुए वो बच्चा शांत हो जाता है। इस वीभत्स घटना में किसका भगवान बड़ा था शियाओं का या सुन्नियों का या फिर इन दोनों को लड़ा कर अपना हित साधने वाले राजनीतिज्ञों का????
इराक़ में तुम्हें क्या मिला??? कौन से रसायनिक हथियार मिले जिनके बारे में तुम्हारा मीडिया चिल्लाता था….. सद्दाम को मार कर मेसोपोटामिया की सभ्यता ही खत्म कर दी न अपने तेल की लालसा में। तालिबान को खड़ा किया तुमने रूस के विरूद्ध और आज तुम्हारे तालिबान और तुम्हारी सेना के टकराव में मेरा अफगानिस्तान खत्म हो गया न। माँ की गोद में लेटा दूध पीता लाड़ से टुकुर टुकुर ताकता बच्चा जाने किस ड्रोन से शव बन जाता है………..
जरा ध्यान से सोचों अरे ओ अंध-आकांक्षी मानवों, भारत-पाकिस्तान, इज़राइल-फिलिस्तीन, उत्तर व दक्षिण कोरिया, सीरिया, यूक्रेन, ईरान आदि तुम्हारे व्यवसाय और अहं के टकराव का ही नतीजा हैं न???
अरब से लेकर भारत तक एक ही संस्कृति है और यही वजह है कि अरब में गिरा बम यहाँ आँसू लाता है। पाकिस्तान के अंदर घुस कर लादेन को मारना, हम भले ही ऊपरी दिखावा करें कि अच्छा किया लेकिन ये हमारा दिल ही जानता है कि वास्तविकता क्या थी. तुमने तो बच्चों को टीका लगाने के नाम पर उसको खोजा था. सरासर विश्वासघात किया था हमारे भोलेपन से. किसी भी तरीके से तुम अपने एजेंट को ढूंढते तो हमें दुख न होता लेकिन तुमने हमारे बच्चों की आड़ ली थी।
तुम्हारे ही बेचे हुये हथियारों का इस्तेमाल करते हैं न ये आतंकवादी संगठन???
सच कितना घिनौना स्वरूप है तुम्हारा……. लिट्टे, माओवादी, उग्रवादी, आतंकवादी, चरमपंथी… व्यवसाय की प्रतिपूर्ति में तुमसे हथियार खरीदते हैं, तुमसे लड़ते हैं, कुछ तुमको मारते हैं, कुछ खुद भी मरते हैं लेकिन अमेरिका से लेकर एशिया तक तबाह वो बच्चे और वो परिवार होते हैं जो प्यारी सी और सुकून भरी जिंदगी जीने का सपना सँजो रहे थे……………..
हथियारों का हर संस्करण चाहे रसायनिक हो, जैविक हो, साइबर हो, सैटेलाइट के जरिये हो, परमाणवीय हो, मशीनी मानव हो या “हार्प” (HAARP) हो – तुम ही ईजाद करते हो, तुम ही इस्तेमाल करते हो और तुम ही दम भरते हो की इनसे मानवता सुरक्षित है…………. अरे लाखों लोगों की एक झटके में जान लेने वाले ये हथियार कौन सी मानवता के रक्षक हैं?????? आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों तुम्हारे जैसा कोई हिरोशिमा और नागासाकी का इतिहास दोहरा कर फिर भविष्य की जान लेगा॥
विश्वयुद्दों में मानवता मरी थी, अमेरिका से लेकर जापान, जर्मनी से लेकर रूस, ब्रिटेन से लेकर फ्रांस तक सब जगह लाशें थी इन्सानों की. लेकिन लाभ हुआ था हथियारों के सौदागरों का।
आज की स्थिति का भविष्य वास्तव में अंधकार में डूबा हुआ है कुछ समझ नहीं आ रहा क्या होगा हमारी औलादों का इस मानसिकता से??? स्कूल में छोटे छोटे बच्चों पर बंदूकें चल रही हैं… बोको हराम अल्लाह के नाम पर निर्दोषों को मार रहा है, बच्चियों को बेच रहा है…… माओवादी – नक्सली मरे हुए सैनिकों की लाशों में बम बांध रहे हैं……. तालिबान मलाला जैसी मासूम बेटियों के सर पर गोली दाग रहे हैं……. सीमाओं पर अपने ही परिवारों के सिर काटे जा रहे हैं…….. और, अफगानिस्तान में मदरसे में खेलते चहकते बच्चे ड्रोन का शिकार हो रहे हैं।।।।।।।।
उस पर खामोशी से, पर्यावरण असंतुलन अगणित मानवों की जान ले रहा है, रोज अस्पतालों में मलेरिया, हैजा, कैंसर, पीलिया, दमा, हृदयाघात, रक्तचाप, फ्लू, एड्स इत्यादि बिना किसी आवाज के जाने कितनी लाशों को दफना रहा है।
सिंधुस्थान के मेरे आकाओं, बहुत कठिन घड़ी है तुम्हारे समक्ष। अपने आपसी वैमनस्य को भूल कर मानवता को बचाने का यत्न शुरू कर दो। मानवता को इस पृथ्वी पर बचाने वाला ये तुम्हारा उपमहाद्वीप एक बार फिर साक्षी बनेगा मानवोत्थान का. क्योंकि बाकी विश्व के सभी राष्ट्र अनंत खतरे की जद में हैं। विश्व के भौगोलिक स्वरूप की रचना इस प्रकार है की कोई भी खतरा होने पर ध्रुवों से विनाश की शुरुआत होगी। वहाँ एक छोटे से सूक्ष्म स्तर की हलचल सम्पूर्ण चुम्बकीय कवच में ऊर्जा के प्रवाह को अनियंत्रित कर देगा जिसका तात्कालिक प्रभाव ध्रुवों के समीप राष्ट्रों को उठाना पड़ेगा. बर्फ पिघलने और समुद्र स्तर उठने से महाविनाश का तांडव मचेगा। व्यवसाय का भस्मासुर उसके अपने नियंताओं को निगल लेगा। इसका दीर्घकालिक प्रभाव बड़े स्तर पर तटीय व द्वीपीय क्षेत्रों पर कहर बरपाएगा। पृथ्वी के हृदय में स्थित चारों ओर से प्रकृति सरंक्षित भारतीय उप महाद्वीप की बारी सबसे अंत आएगी और अगर यहाँ की सबसे सरल जलवायु भी विरल हो जाएगी तो मानवता का अंत निश्चित ही है।
इस उपमहाद्वीप में स्थित प्रत्येक राष्ट्र से मेरी प्रार्थना है की मानव रक्षा में अपने भाग को सुनिश्चित करें। पहचानें अपनी भौगोलिक शक्ति को और सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त पर्यावरण विनाश की प्रक्रिया से अपने वासियों को बचा लें।
हमें अपने शहरों, गावों व मानव बस्तियों के आस पास वृहद स्तर पर “वन केंद्र” अर्थात “Forest Points” बनाने होंगे। लगभग 10-50 बीघे की हर तरह की जमीन को पाँच हज़ार की आबादी के लिए सुरक्षित किया जाये। नैसर्गिक अनुकूलित पौधों तथा वृक्षों को चारों तरफ से ढलवांदार क्षेत्रफल में लगाया जाये तथा मध्य में लगभग 1-2 बीघे में शुद्ध वर्षाजल संग्रहीत करने वाला गहरा तालाब हो जिसके ठीक बीचोंबीच 20 मीटर क्षेत्र में कुएं नुमा गहराई को जाली से ढका जाये। वृक्षों में बरगद, पीपल को भी प्रमुखता दें क्योंकि पीपल में सर्वाधिक आक्सीजन देने की क्षमता व विष को समाहित करने की शक्ति है, यहाँ तक की साँप के जहर को उतारने में भी इसकी कोंपलों का इस्तेमाल होता रहा है। पीपल के पत्तों में सर्वाधिक मात्रा में “वैक्यूल्स” तथा “स्टोमाटा” मौजूद होते हैं जो इसको विशिष्ट गुण प्रदान करते हैं। इसी प्रकार बरगद में भी अभूतपूर्व क्षमता है “ग्लोबल वार्मिंग” के विरुद्ध. इसके पत्तों की चमकीली वसा युक्त मोटी परत “इंफ्रारेड रेडिएशन” से जमीन को सुरक्षित रखती है और सूर्य की किरणों के हानिकारक भाग को परावर्तित कर देती है….. यही वजह है की चाहे जितनी गर्मी पड़ रही हो लेकिन बरगद प्रजाति के वृक्षों के नीचे हमेशा शीतलता मिलेगी अन्य वृक्षों के मुक़ाबले। बिना किसी धार्मिक सवालों के इनके वैज्ञानिक महत्व को प्रधानता दिया जाये। इन वृक्षों के अलावा इलाकों विशेष में पाए जाने वाले फलदार वृक्षों व पौधों को भी लगाया जाये क्योंकि किसी भी आपात स्थिति में ये बचे हुये मानवों की भूख को शांत करेंगे।
ये ऐसे केंद्र होंगे जहां हमारी संतानों को खाना, पानी, ऊर्जा तथा छाया मिल सकेगी. वो हर स्थिति में बच सकेंगे, न केवल पारिस्थितिक असंतुलन से होने वाले विनाश से वरन परमाणवीय विश्व युद्धों से भी। ये “Forest Points” हमें जैविक तथा रसायनिक हमलों से भी बचा लेंगे। साथ ही साथ निकट भविष्य में खत्म होने वाले पेट्रोल, गैस, कोयला जैसे ऊर्जा संसाधनों का विकल्प भी बनेंगे।
एक और आग्रह है की नयी सरकार है भारत में, जिस पर सारे विश्व की निगाहें हैं, जीवधारियों के अलावा व्यवसायी भी उत्सुक है अपने भविष्य को लेकर। पता नहीं विकास का क्या पैमाना होगा इस सरकार में??? बस इतना ध्यान रखना की कार्बन डेटिंग के मुताबिक दसियों हज़ार साल पुरानी सभ्यता का मुक़ाबला चंद तीन शताब्दियों वाला विकास नहीं कर सकता। वेदों के ऊपर से धर्म का ठप्पा हटा कर उसका विज्ञान पढ़ना और देखना क्यों ऋग्वेद में इन्द्र लड़ा था पानी को रोकने के खिलाफ, क्यों वो बांध तोड़ देता था? नदियों की स्थितिज ऊर्जा को रोक कर बांध में हम बिजली तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन इसका नुकसान उस ऊर्जा पर निर्भर प्राणियों को भोगना पड़ता है। नदियों के किनारों को पक्का करना, उसके अगल बगल सड़कें बनाना और नदियों को जोड़ना एक आत्मघाती कदम होगा। “नदियों को साफ करने के लिए एकमात्र और बिना किसी तकनीकी का रास्ता है उनके किनारों पर कम से कम एक किलोमीटर चौड़े ऊंचे वृक्षबंध बनाना”, न कि कंक्रीट की जमीन पर मूक जानवरों को कुचल कर जैव विविधता की हत्या करके नदियों को साफ रखने का सपना देखना।
ओज़ोन खत्म करते एयर कंडीशंड हालों की मीटिंगें छोड़ अपने जंगलों को समझना, भौतिक ऊर्जा पर निर्भर अपने अस्तित्व को पेड़ों के बीच बहती ठंडी बयार में महसूस करके देखना, नैसर्गिक गंगा के तट पर लगे बरगद की छाया को जरा निहारना जिसने हमें और हमारे प्रकृति विज्ञान को अनंत सहस्त्राब्दियों से जीवित रखा है। अपने बच्चों को वो शिक्षा देना जो प्राकृतिक अन्वेषण का परिणाम हो, शोधपरक हो जिसमें आत्मसंतुष्टि, जीवन कौतूहल, प्रकृति और आजीविका का सम्मेल हो न कि उस पश्चिमी विश्वासपूरक शिक्षा की ओर बच्चों को भटकाना जिसमें विलासिता, अपव्यय, आत्महंता अवसाद और स्थूल क्षुद्र जीवन का लक्ष्य हो।
बहुत आसान लक्ष्य है और बड़ा सीधा रास्ता, बस शर्त सिर्फ इतनी है की इस प्रोजेक्ट में किसी भी प्रकार का राजनीतिक, धार्मिक व व्यावसायिक लाभ न ढूंढा जाये। ईमानदारी से इस भूमि का प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य में जुट जाये और आने वाले पाँच-छह सालों में बिना किसी राष्ट्रियता, धर्म, संप्रदाय व लालच के ऐसी जमीन तैयार कर दे जहां उसकी नस्लें जिंदा रह सकें और इस बाहरी आपस में उलझती, लड़ती और खत्म होती दुनिया को भी शायद बचा सकें।
yadavrsingh.blogspot.com
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राम सिंह यादव
कानपुर, भारत
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