Menu
blogid : 17216 postid : 698193

प्राण

FOREST REVOLUTION THE LAST SOLUTION
FOREST REVOLUTION THE LAST SOLUTION
  • 18 Posts
  • 19 Comments

प्राण

दो ऊर्जाओं का संसर्ग
और उससे उत्पन्न होता प्राण ,,,,
कितनी अद्भुत संरचना है, ब्रह्मांड की !!!!!!

मानव परे – रहस्य ,,,,
आखिर कैसे मांस और मज्जा का स्थूल आवरण ओढ़ लेता है ????
चल-अचल काया
किस तरह दृढ़ रहती है
और कैसे इसके विलुप्त होते ही
जर्जर होकर,,, आकार ढह जाते हैं???

विलक्षण है प्रकृति !!!!

कभी ग्रहों को समेटे अनंत आकाश ,,,,
कभी ध्रुवों में छिपा गुरुत्वाकर्षण ,,,,
कभी सूर्य की परिक्रमा करते गोल पिंड ,,,,
और कभी लौह जैसी निर्जीव वस्तु को बांधती ऊर्जा !!!!

सूखे बीज ,,, पाषाण तोड़ कर कैसे पल्लवन करते हैं ????
कैसे नौ महीने कोख में दो अणु मानव का सृजन करते हैं ????
पंच तत्वों के खिलवाड़ में सृष्टि कैसे निर्मित होती है ????

पुरातन से भविष्य तक
एक ऐसी जिज्ञासा जो खत्म ही नहीं होती है ,,,,,
सिद्धान्त बनते हैं – सिद्धान्त बिगड़ते हैं ,,,,
उत्तरोत्तर शोध संभवतः परिष्कृत होते हैं !!!!!

बुद्ध सम्यक सत्य का ज्ञान लाते हैं ……
महावीर अहिंसक प्रवृति का स्वरूप समझाते हैं ……
शांत अधखुले नेत्रों में नानक का निरंकार ब्रह्म है ……
ईसा प्राणी सेवा में मुक्ति मार्ग सुझाते हैं ……
और कभी हजरत त्याग आधारित मानव संहिता का निर्माण करते हैं ……

मानव भ्रम में पड़ा ,,,,
शरीर, पिंड, कोशिका, अणु, और हिग्स बोसॉन
खोजता चला जाता है !!!!!

प्राण फिर भी जटिल है ,,,,
एक ऐसा तत्व जो संभावनाओं को स्वरूप देता है !!
भौतिक संसार से अनंत वृहद सूक्ष्म संसार का आभास देता है !!!!!

सैन्धव पशुपतिनाथ समाधि में लीन होकर सत्यता का आह्वान कर रहे हैं ,,,,
तानसेन की झंकृत होती स्वर लहरियाँ मेघ और दीपक के साथ तारतम्य बिठा रही हैं !!!!

अंतरध्यानता, परकाया प्रवेश, सम्मोहन और वृहद काया का विज्ञान
किस आत्मविध्या का ध्योतक था ????

इतनी रहस्यमयी, अद्भुत और जटिल
प्रकृति प्रदत्त संरचना के साथ जीव कैसे खेल लेता है ????

कभी रस्सी में झूलती गर्दन ,,,,
कभी महीन ब्लेड से कटी हुई कलाई ,,,,
कभी पटरी में अलग पड़ा मस्तक ,,,,
और कभी आग से दहकता शव ,,,,

कभी सीमाओं पर जान देता सैनिक ,,,,
कभी कमर में मौत बांधे आत्मघाती ,,,,
प्रतिकार अथवा शान के नाम पर —
मृत्यु का नंगनाच …..

इतनी आसानी से प्राणों को त्यागता और छीनता मानव ,,,,
कैसे भूल जाता है
जन्म के सिद्धान्त को ????

अरे जीवन का मर्म उससे पूछो ,,,,

जिसके इकलौते नौनिहाल को ब्लड कैंसर है ,,,,,
रोड एक्सिडेंट में खून उगलती बुझती आँखों से ,,,,,
एक सौ चालीस रुपये के इन्हेलर से सांस खरीदते इंसान से ,,,,,
या पूरे परिवार के सहारे को हृदयाघात ,,
और उसकी फटी निगाहों का रोशनी को ताकना ,,,,,
माटी मोल जीवन को अनमोल बना देता है !!!!!

इसी ऊहापोह में ,
कलम को दाँतो से दबाए ,,,,
भौतिकता और आध्यात्मिकता में सामंजस्य ढूँढता हूँ ……

चित्र बनाता हूँ उस माँ का अपने पटल पर
जिसकी ये संतान थे !!!
या उस परिवार को महसूस करता हूँ
जिसकी क्षति हुई है !!!!

न्यूक्लियर बमों के ढेर में बैठी जाति
अवसाद के भंवर मे जान देती प्रजाति !!!!

प्रकृति पोषित –
प्राणों को सहेजने का भीषण यत्न करती
सम्पूर्ण जीवनी का अब यही परिणाम है ????

सोचता हुआ बहुत दूर निकल आता हूँ
किंकर्तव्यविमूढ़ सा !!!!

कि अचानक विद्रोही कृष्ण का श्लोक जेहन में कौंधता है ,,,,,,
गहरी श्वांस लेता हूँ ,,,,,,
उद्दिग्न मन शांत हो जाता है ,,,,,,
और स्वयं में विलीन हो जाता हूँ !!!!!
“अहं ब्रह्मास्मि”

वन क्रान्ति – जन क्रान्ति

FOREST REVOLUTION – THE LAST SOLUTION

yadavrsingh.blogspot.com
yadav.rsingh@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh